दादी सा चली गई
अपने अभिनय की छाप छोड़ गयी
बालिका वधु की दादी सा को कौन भूल सकता है
जो उस सीरियल की जान थी
असली नायिका तो वही थी
एक अनपढ़ औरत का सफर
जो रूढ़ीवादी से आधुनिकता को स्वीकार करती है
वह भी अपने पोते की बहू के कारण
एक कठोर सास
एक ममतामयी माँ
एक अनुभवों से पगी दादी
पूरा घर का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर
क्या चाल क्या ठसक
गले में हसुली
पैरों में कडे
सर पर दुपट्टा ओढे
न जाने कितने बडे बडे काम
गाँव की कम पढी लिखी भी वर्किंग लेडी हो सकती है
कठोरता पर ममता में पगा
पढा - लिखा बेटा
आधुनिक बहुए
उनके साथ तालमेल बिठाती दादी सा
यह किरदार कोई नहीं भूल सकता ।
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Saturday, 17 July 2021
सुरेखा सीकरी
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