Wednesday, 27 October 2021

यह है एक गृहिणी की आपबीती

करना चाहती हूँ अपने मन की
जब मेरा जी चाहे जो चाहे
वह सब करना
न कोई पाबंदी न कोई बंधन
सोने का मन हो तो सोते रहूँ
देर रात तक टेलीविजन देखते रहूँ
सुबह टहलने जाने का मन हो
तब निकल जाऊं
आराम से तफरी कर आऊ
नुक्कड़ पर खडे हो कटिंग चाय की चुस्कियां लूं
उगते हुए सूरज को निहारू

ऐसा नहीं होता
यहाँ दूसरों का ख्याल रखना पडता है
दूसरों को समय से जगाना पडता है
देर रात तक इंतजार करना पडता है
टेलीविजन पर सबकी पसंद
नहीं मेरी पसंद
सुबह सबके चाय - नाश्ते का प्रबंध
टहलने की छोड़ों
सुबह घर के कामों में आपाधापी
जो रात तक अनवरत जारी
बस दोपहर में थोड़ा विश्रांति
वह भी कोई  अकस्मात आ गया
डोर बेल बज गई
फोन की घंटी घनघना उठी
तब फिर उठिए बैठो

संझा के चाय - नाश्ता से लेकर खाने तक की तैयारी
अपनी पसंद छोड़ सबकी पसंद का ख्याल रखना
बचा हुआ खाना स्वयं ही खाना
अन्न का नुकसान नहीं
दूसरे खाएंगे नहीं
यह सब करते-करते रात हो जाना
सब निपटा कर बिस्तर पर पड जाना
यह सोचते- सोचते
सुबह क्या बनेगा
नींद के आगोश में समा जाना
मन का करना क्या
सोचने की भी फुरसत नहीं
यह है एक गृहिणी की आपबीती

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