मैं एक नौकरी पेशा महिला हूँ
रात से ही अगले दिन का काम शुरू हो जाता है
कपडे निकालकर रखना ,आटा गूंथना ,सब्जी काट कर फ्रीज में रखना ,पति और बच्चों के कपडे,युनिफॉम
अलार्म लगाना ,यह रोज की दिनचर्या
बाकी सदस्य टी वी या दूसरे मनोरंजन में व्यस्त
तो मैं अगले दिन की तैयारी में व्यस्त
सुबह अलार्म की घंटी के साथ उठना
दूध गर्म करने से लेकर टिफिन तैयार करने तक
कैसै वैसे तैयार होकर बस और ट्रेन के धक्के खा दफ्तर पहुँचना ,काम में व्यस्त हो जाना
लंच के समय जल्दी जल्दी रोटी सब्जी गटकना
ताजातरीन होने के लिए तीन चार बार चाय
शाम होते ही फिर वही आपा धापी
घर पहुँचने की चिन्ता ,अगले दिन और काम की चिंता
लोग कहते है कि
अपने लिए समय निकालो लेकिन किस तरह
इसमें दोष किसी का नहीं
आत्मनिर्भर होने और जीवन शैली ऊँचा करने के लिए
यह रास्ता तो मेरा ही चुना हुआ है
आज हालात यह है कि मकडी जो जाला बुनती है
और स्वंय उसी में उलझ कर रह जाती है
परिवार के रहन सहन ,मंहगे स्कूल ,कार ,मंहगे घर
LED टी वी से लेकर मंहगे मोबाईल ,हवाई जहाज का सफर ,साल में एक बार दर्शनीय स्थल जाना
पर सुकुन और संतोष छिन गया
खुशी और सुकुन की जगह परेशानी
दोष किसी का नहीं
आर्थिक आजादी तो मिली पर मन की आजादी कहीं खो गई
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