अगर जीवन एक फिल्म होती
जब चाहे सी डी लगाकर देख लेती
ब्लेक और व्हाइट दृश्यों में रंग भर देती
जो दृश्य नहीं चाहिए कॉट छॉट देती
जैसा चाहती वैसी पटकथा लिखती
सब कुछ सुंदर और परिपूर्ण ,दुख तो होता ही नहीं
मनचाहा नायक होता ,मनचाहे सपने होते
एक बडा सा बंगला होता ,फूलों की क्यारियॉ होती
जहॉ मनचाहे सपने बुनती और आशाओं के झूले में झूलती ,मनभावन सपने को साकार करती
दुखी और पीडादायक लम्हों को भी आनंद दायक बना देती पर अफसोस जीवन फिल्म नहीं है
न उनकों खींचकर मनचाहा रूप देनेवाला कैमरा भी नहीं है
जीवन तो भूत ,वर्तमान और भविष्य का वह भँवर जाल है कि उससे निकलना भी मुश्किल
अतीत पीछा नहीं छोडता ,वर्तमान जीने नहीं देता और भविष्य सोच -सोचकर परेशान कर देता है
अंत में उस पर मृत्यु रुपी परदा पड जाता है
सब यही का यही धरा रह जाता है
रोते हुए आए थे पर जाएगे कैसे यह तो परिस्थितियॉ तय करती है हम नहीं
हम तो ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली है जो उसका दिया हुआ रोल निभाते हैं
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment