मेरी मातृभाषा हिन्दी है पर मुझे पढने का शौक है
तो मैं मराठी ,गुजराती पढ लेती हूँ
मुंबई में रहने के कारण मराठी आती ही है
घर पर पेपर देनेवाले ने बताया कि टाइम्स आँफ इंडिया की स्कीम चल रही है
तो आपको एक पेपर उसके साथ मिलेगा तो मैंने महाराष्ट्र टाइम्स के लिए कहा
पर दो -चार दिन तक मुंबई मिरर आते देख मैंने पूछा तो उसका जवाब था मैंने समझा ,आप मजाक कर रही है आपको मराठी आती है यह मालूम नहीं था
क्योंकि वह जानता था कि मैं उत्तर भारत से हूँ
हिन्दी और मराठी दोनों देवनागरी लिपी में है
और वर्षों से रहते हैं तो भाषा आ ही जाती है.
आज दक्षिण मुंबई के मराठी और दूसरी भाषाओं की पाठशालाएं बंद हो रही है
हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढाना चाहता है
ठीक है पर घर पर भी न बोलना
फिर तो धीरे -धीरे यह खत्म हो जाएगी
भविष्य दिखा रहा है कि आज से पचास साल बाद तो शायद ये सुनने को भी न मिले
अगर अंग्रेजी गलत बोले तो ठीक है तो दूसरी क्यों नहीं
भाषा का इस्तेमाल होगा तभी वह जिंदा बचेगी
नहीं तो इनकी हालत भी संस्कृत जैसी हो जाएगी
उसे लचीला बनाया जाय
रोजी -रोटी का जरिया बनाया जाय
बोलने में सम्मान महसूस हो न कि उसे रोका जाय
प्रोत्साहन दिया जाय
अगर हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं कर सकते
तो दूसरों की क्या करेंगे
महाराष्ट्र में रहने वाले हर व्यक्ति को मराठी आनी चाहिए
विदेशी भाषा सीखी जा सकती है तो अपनी क्यों नहीं?
फिर चाहे वह हिन्दी हो ,मराठी हो या अन्य कोई
पारंगत न हो लेकिन बोलचाल का माध्यम तो हो ही
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