प्रधानमंत्री जी संसद में पहली बार प्रवेश करते समय उसकी देहली पर मत्था टेका था
वैसे भी सभी सांसदों के लिए वह प्रजातंत्र का मंदिर ही होना चाहिए
पर पिछले कुछ समय से वह बातों का अखाडा बना हुआ है
इतना उग्र होकर बात का जवाब देना
एक दूसरे की ओर उंगली दिखा -दिखाकर बोलना
संसद जनता की समस्याओ को सामने रखने के लिए है
न कि अच्छा वक्ता और भाषण के लिए
एक -दूसरे पर दोषारोपण करना
मुद्दे को छोडकर व्यक्तिगत आक्षेप करना
मॉ दुर्गा के लिए अपमानित शब्दों और लेख को पढना
सर काट कर दूसरे नेता के चरणों में डालने की बात करनी अगर वह संतुष्ट नहीं हुई तो ?
विपक्ष क्यों नहीं विरोध करेंगा?
वह तो उसका काम ही है
यह संसद है स्टेज नहीं ,जहॉ भाषण पर तालियॉ बजेगी
फिर आप विपक्ष से कैसे सहयोग की अपेक्षा कर सकते हैं
सोशल मीडिया में भले ही वाह वाही हुई हो लेकिन दुसरे दिन से ही किरकिरी होने लगी
रोहित की मॉ का सामने आना और झूठा साबित करना
यह हंगामा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है
जबकि जरूरत थी कि सब मिल -जुलकर हल निकाले
कब तक अगडो -पिछडो के नाम पर राजनीतिक दल अपनी -अपनी रोटियॉ सेकेंगे ?
जनता को कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर बरगलाते रहेंगे
ये लोग इमानदारी से जनता के बारे में सोचे और कार्य करें न कि एहसान जताए कि हमने आपका यह काम किया है
एडमीशन करवाया है या और कोई काम
आप लोगों तो इन्हीं लोगों ने सत्ता पर बिठाया है
यह हमेशा याद रखना है
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