मैं एक बेटी ,बहन ,पत्नी और मॉ हूँ
पर इसके साथ- साथ एक व्यक्ति भी हूँ
हाड - मॉस की बनी जिसमें एक मन भी है
भावनाएं हैं ,आंकाक्षा है ,कुछ बनने की चाह है
मैं घर की धुरी हूँ, कुशल प्रशासक हूँ
घर और परिवार चलाना और संभालना इतना आसान नहीं
नई पीढी को रास्ता दिखाना
समाज को दिशा देने की जिम्मेदारी भी मेरे ही कंधों पर
आदर्श स्थापित करना क्योंकि अगर मेरे पैर लडखडा गए तो सारा ढॉचा ही तहस- नहस
फिर भी मुझे अबला कहा जाता है
जननी और जीवनदायिनी को इतना कमजोर लेखना
बेटी को गर्भ में ही खत्म कर देना
इतना डर उसके जन्म को लेकर
बिना जिसके सृष्टि की कल्पना नहीं
उसी पर अत्याचार
कब तक यह मानसिकता चलेगी
बेटी चॉद पर पहुँची है ,बेटा देखता ही रह गया
बेटियॉ उडान भर रही है पर हम उन्हें जमीन पर ही देख रहे हैं
जहॉ पहुँच रही है वहॉ अपना परचम लहरा रही है
फिर भी उसकी मंजिल विवाह तक ही सीमित हो जाती है ,
यह हमारा और हमारे समाज का देखने का नजरियॉ है
कब तक बेटे के जन्म पर ढोल - तासे बजेंगे
और बेटी के जन्म पर मातम
अब तो जागा जाय
बेटी को बोझ नहीं शक्ति समझा जाय .
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