प्रत्यूषा बनर्जी यानि बालिका वधू की आंनदी की मौत फिर एक बार न जाने कितने सवाल खडा कर गया है
एक मात्र २४ साल की लडकी का इस मुकाम तक पहुंचना कि हर घर में उसकी पैठ होना
हर कोई को उसका इंतजार रहना
घर - घर की प्यारी आंनदी इस तरह लोगों को रूला कर चली जाएगी ,किसी ने सोचा भी न था
हमारे इन कलाकारों की वास्तविक जिंदगी का सच क्या होता है
परदे के पीछे की इनकी जिंदगी
जिया खान ,विवेका बाबाजी ,और अब प्रत्यूषा तथा इनके पहले भी कितने
कहीं न कहीं इनके पीछे इनके ब्वाय फ्रेंड का हाथ रहा है ,फिर वह भावनात्मक हो ,मानसिक हो या फिर कुछ और हो
पर क्या समस्या का हल केवल मौत ही है
प्रत्यूषा की मौत पर राखी सॉवत का जवाब काबिले तारीफ है उनका कहना कि भाड में जाए ब्वायफ्रेंड
किसी के लिए मरने की क्या जरूरत है
सही है जिस लडकी ने इस मुकाम पर आने के लिए न जाने कितनी लडाइयॉ लडी होगी
एक झटके से अपनी जान दे देना.
अपना और अपने माता- पिता के अरमानों का गला घोट देना
वह व्यक्ति तो चला जाता है पर अपने लोगों को जीते जी मार जाता है
और यह अच्छी पढी लिखी डॉक्टर, इंजीनियर ,प्रोफेसर तक कर रही है
इनसे तो वह अनपढ अच्छी है जो डट कर परिस्थितियों का सामना करती है
नारी आगे बढ रही है ,सब जगह लोहा मनवा रही है
पर भावनात्मक स्तर पर हार जा रही है
यहॉ भी उसे मजबूत होना पडेगा
विकास करना है तो यह सब तो होगा ही
यहॉ ही वह पुरूष के सामने क्यों झुक जाती है
वक्त को वक्त दे ,वह हर घाव का मरहम है
इसके अलावा परिवार तथा समाज का साथ
हम सोचते हैं बच्चे बडे हो गये
पर उम्र तो अभी नादान ही है उनको अपनों के साथ की जरूरत है
प्रत्यूषा की मौत कई सवाल छोड गई है
आखिर इतनी कम उम्र में शोहरत और नाम हासिल करने वाली को इतना मजबूर होना पडा कि उसके सामने खुदकुशी के सिवाय और कोई रास्ता बचा ही नहीं
लडका हो या लडकी ,हर माता - पिता को अपने बच्चों के साथ खडा रहने की जरूरत है
बच्चे दूर रहते हैं ,कमा रहे हैं पर उनको आधार की जरूरत है
आज नारी पुरूष साथ काम कर रहे हैं तो रिश्तों और प्यार की परिभाषा भी बदल रही है
जिसको हर किसी को स्वीकार करना पडेगा
जान देना किसी समस्या का हल नहीं है
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