कुछ दिन पहले की बात है मैं अकेली कहीं बाहर काम से गई थी ,रास्ते में भूख लग गई थी
एक अच्छा सा हॉटेल पडता था रास्ते में
मैं पहले भी वहॉ जा चुकी थी पर इस बार अकेली थी
एक टेबल खाली देखकर बैठ कर मसाला डोसे का आर्डर दिया
मैंने खाना शुरू ही किया था कि एक मैले - कुचैले
कपडे पहने एक औरत गोद में एक छोटे से बच्चे को लेकर सामने बैठ गई
वेटर को उसने लस्सी लाने को कहा
वेटर ने कहा कि पचास रूपये की है तो भी उसने लाने को कहा
मुझे उसके साथ ही सामने टेबल पर बैठ कर खाना नागवार गुजर रहा था
लस्सी लाने पर उसने स्ट्रा से पिलाना शुरू किया
इस बीच वेटर ने मुझे पूछा कि कुछ प्राब्लम तो नहीं है
मैंने जल्दी से अपना खाना समाप्त किया और मुँह बिचका कर उठ गई बिल अदा कर
बाहर निकल कर मैंने चैन की सॉस ली जैसे कोई मुसीबत से छुटकारा मिला हो
पर अंदर का जमीर जाग रहा था
पछतावा हो रहा था कि उसके पैसे मैंने क्यों नहीं अदा कर दिए
अगर आकर सामने बैठी ही तो मुझे क्यों बुरा लगा
शायद मैंने एक गरीब की मदद करने का मौका गवॉ दिया था
किसी मॉ की दुआ और किसी बच्चे का पेट भरने का पुण्य काम कर सकती थी पर अब क्या फायदा????
ईश्वर न जाने हमको कितने ऐसे मौके देता है पर हम समझ ही नहीं पाते
मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है इसलिए ऐसे मौकों को गवॉना नहीं चाहिए.
गरीब की दुआ में बडी ताकत होती है
वह भी इंसान है
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