हर रोज अखबार में हम ज्योतिष कॉलम देखते हैं
अगर हम चार जगह देखे तो सबकी भविष्य वाणियॉ अलग- अलग
हर न्यूज चैनल पर पूरे दिन में दो- तीन बार तो दिखाई ही जाती है
हम पढ- सुनकर उसी को सोचते है
अच्छा लिखा तो ठीक नहीं तो बुरा है तो मन मायूस
अगर भाग्य पहले ही लिखा जा चुका है तो हम कुछ नहीं कर सकते
हाथ की लकीरे तो जन्म से ही लेकर जन्म लेते है
कल क्या होगा ,इसे सोचकर डर- डर कर जीते हैं
कुछ नहीं कर सकते पर चिंता करते हैं
बच्चों का भविष्य ,उनकी शादी इत्यादि के बारे में विचाररत रहते हैं
जबकि अभी क्या होगा ,पल भर में क्या कुछ बदल जाएगा
यह हमें मालूम नहीं
भाग्य के हाथों की हम कठपुतली है
जब कुछ ऊपर वाले के हाथ में है और जो होना है वह भी होगा ही
फिर भी हम स्वयं को दोष देते हैं
राम का वन गमन,राजा दशरथ की मृत्यु तो सुनिशिचित थी पर नियती कैकयी को दोषी बना अपना खेल ,खेल रही थी
कितना कमजोर है इंसान
भाग्य के हाथों मजबूर
कभी स्वयं को दोष,कभी भाग्य को तो कभी अपने कर्मों को
या पिछले जन्मों के पापों का ,जिनसे हम अनभिज्ञ है
वक्त कब करवट लेगा और कैसा तमाचा मारेगा पता नहीं
कभी सोचते हैं कि हमारे भाग्य में ही ऐसा क्यों?? इसका जवाब तो किसी के पास नहीं
कितना भी पूजा- पाठ कर ले
टोने- टोटके ,यज्ञ- हवन कर ले
महात्मा ,ज्योतिषी ,तॉत्रिक की शरण ले
जब तकदिर में नहीं तो वह कहीं भी नहीं
तकदिर बनाना हमारे हाथ में है यह कहना - सुनना ठीक है
भाग्य न हो तो हुनर और मेहनत भी सडकों पर धक्के खाती है
रामचरित मानस की पंक्तियॉ.
लाभ ,हानि ,जीवन ,मरण ,यश,अपयश विधि हाथ
फिर भी मानव प्रयत्नशील है
जो कल सही था वह आज सही नहीं है
अगर पता होता देवव्रत को तो वह शायद भीष्म प्रतिज्ञा नहीं करते न महाभारत होता
पर सब तो भाग्य में है तो भोगना भी है
शायद इसी का नाम माया है
और भाग्य तथा तकदिर भी है
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