बल खाती ,इठलाती ,पतली कमर लचकाती
हिरनी जैसी ऑखें ,लंबी - लंबी ग्रीवा
नागिन जैसे लहराते केश
हँसती - खिलखिलाती आ रही
नैनों को भा रही
वसंत आगमन का संदेश ला रही
सुनहरी स्वर्ण जैसी काया ,उस पर पीला मन भाया
हो गया सोने पर सुहागा
वाणी में मिठास घोलती
ऑखों के कटार से वार करती
सबको घायल करती
अदा पर अदा
नखरे तो है हजार
मदमस्त यौवन और वसंत
क्या संयोग है
खामोशी में भी तरंग है
हरियाली से भरा जग है
कोंपलें फूट रही
अंगडाई ले रही
सपने देख रही
यौवन खुमार पर
हॉ यह वसंत है ,वसंत की बहार है
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