गुरू - ज्ञानदाता ,जीवन को दिशा देने वाला
ईश्वर के समकक्ष , सबसे महान
पर आज की उसकी स्थिति ,कठपुतली बन कर रह गई.
वह नौकर नहीं एक स्वतंत्र व्यक्ति है
उसके ज्ञान के प्रचार- प्रसार की कोई सीमा नहीं
जहॉ शिक्षक का सम्मान नहीं
उस देश ,काल ,समाज की उन्नति नहीं
साम- दाम - दंड- भेद का प्रयोग कर छात्र को उन्नति के शिखर पर पहुँचाना
जहॉ गुऱू बिका ,जहॉ विद्या बिकी ,जहॉ उसका अपमान हुआ , उसका भयंकर परिणाम
इतिहास गवाह है
चाणक्य का अपमान ,मौर्य साम्राज्य की स्थापना
ग्वाले के पुत्र को राजगद्दी चंद्रगुप्त मौर्य को
द्रोणाचार्य बिके तो महाभारत
कौरव - पॉडव के ही गुरू रहे
एकलव्य का अंगूठे का बलिदान ,अर्जुन की गांडिव में दिखा और विनाश हुआ
आज उन्नति से अवनति की ओर जा रहा समाज
शिक्षक की अवमानना का परिणाम.
कभी कोई नचा रहा तो कभी कोई
कभी पालक ,कभी बच्चें ,कभी विभाग
जहॉ ज्ञान देने की स्वंतत्रता न हो
शिक्षा व्यापार बन जाय
गुरू - शिष्य परम्परा खत्म
शिक्षक नौकर और शिक्षा व्यवसाय
व्यवसाय में नफा - नुकसान का हिसाब रखा जाता है
वही हो भी रहा है
नैतिकता खत्म हो रही है
शिक्षक और छात्र दोनों का नजरियॉ बदल गया है
और यह सबके लिए घातक है
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