मॉ कभी अपनी संतान में भेदभाव नहीं करती
पर यह भी सच है कि झुकाव कमजोर संतान की तरफ कुछ ज्यादा होता है
मॉ कभी बूढी नहीं होती और बच्चे कभी बडे नहीं होती
बच्चे हमेशा मॉ से आशा ही लगाए रहते हैं
ऑखें भले धुंधला गई हो
हाथ पैर कॉप रहे हो
पर फिर भी वह अपने बच्चों की खुशी के लिए
कॉपते और लरजते हाथों से पकवान जरूर बनाएगी
उनका इंतजार करेगी
उनके आने पर खुश हो जाती है
सारी थकावट भूल जाती है
आज भी उसे बच्चों की चिंता के साथ उनके बच्चों की भी चिंता रहती है
कभी उसकी भी चिंता कर लेनी चाहिए
उसे भी कभी पकवान बना कर दे
कभी उसकी भी कोई इच्छा पूरी कर दे
संतान केवल लेने के लिए नहीं
देने के लिए भी हो
आदर ,सम्मान के साथ
अपनी जन्म दात्री के प्रति भी तो कुछ कर्तव्य है
कभी उसने दिया है अब आपकी बारी है
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