Thursday, 3 November 2016

तलाक ,तलाक ,तलाक और मामला खतम

औरत को वस्तु समझना
जब चाहे इस्तेमाल करना
जब चाहे निकाल फेकना
रास्ते पर तलाक वह भी तीन बार तलाक बोलने से
बच्चा नहीं जन रही इसलिए तलाक
फोन पर से भी तलाक
ऐसा हुआ तलाक नहीं खेल हो गया
कौन से धर्म के ठेकेदार इसका समर्थन कर रहे हैं
उनके घर में भी बेटियॉ होगी
मर्द दुसरी शादी करता है तो उसका दर्द पहली ही झेलती है
इस मंहगाई के जमाने में चार- चार शादी
यह तो बर्बादी के सिवा कुछ नहीं
औरत बच्चा जनने की मशीन
बच्चे खुदा की नियामत
परिवार नियोजन का विरोध
चाहे खाना और निवाला नहीं
हुलिया बनाकर रहना
परदे.में रहना
नई सोच को दरकिनार करना
शिक्षा से वंचित करना
और विकास - तरक्की की बात करना
किस तरह होगा
किस तरह से समाज आगे बढेगा
जब तक नई सोच को न अपनाया जाएगा
एक औरत को तलाक और एक साल साथ रही इसलिए बीस हजार रूपए ले
और घर से निकल जा
जैसे कोई बकरी खरिदी हो
साल भर रही बाद में हलाल कर दिया
यह वाकया इक्कीसवीं सदी का
शर्म आती है ऐसे धर्म के ठेकेदारों पर
इंसान बना है इंसानियत के लिए
हैवानियत के लिए नहीं
अल्ला- खुदा की सब पर मेहरबानी होगी
औरत और मर्द सब उनकी ही औलाद है
तो फिर इतना भेदभाव
कानून बनाने वाले इतना तो जानते ही है
अगर दूसरे देशों में इस पर पांबदी है तो भारत में क्यों ?
पडोसी मुल्क पाकिस्तान भी तीन तलाक को नहीं मानता
मुस्लिम महिलाएं भी विरोध कर रही है
तो मुल्ला - मौलवी अपनी सोच में बदलाव क्यों नहीं कर सकते
कानून बनाने में सरकार को भी असहयोग कर
इससे क्या हासिल होगा
समाज तो पिछडा ही रहेगा
विकास में भागीदार कैसे हो पाएगे
अपनी मानसिक संक्रीडता को छोडे
और एक औरत को भी सम्मान से जीने का हक दिलाए

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