Sunday, 6 November 2016

वाह री मुंबई

मैं आया मुंबई घूमने के लिए
बहुत सुन रखा था फिल्मनगरी के बारे में
स्टेशन पर उतरा तो बाहर झुग्गियॉ थी
उनको पार किया तो टेक्सी वाला जाने को तैयार नहीं
नजदीक की सवारी नहीं लेते हैं साब
किसी तरह एक मिली तो ट्रेफिक जाम
ऊपर से ड्राईवर हर दो मिनट पर पीच- पीच कर खिडकी से बाहर थूक रहा था
और मोदी जी के स्वच्छता आवाहन की धज्जियॉ उडा रहा था
दूसरे दिन घूमने निकला
स्टेशन पहुंचा पर इतनी भीड
बाहर तक लटके हुए
एक ट्रेन किसी तरह पकडी
मरीन ड्राइव देखना था ,समुद्र का नजारा देखना था
उतरा और किसी से पूछा तो कोई ध्यान ही नहीं दे रहा
बताएगा क्या
सब एक ही सीध में भागे चले जा रहे थे
बिना यहॉ- वहॉ देखे
मैं किसी तरह पहुँचा सागर किनारे
तो भेलवाले तथा दूसरे खोमचे वाले
जबरदस्ती अपने यहॉ बुला रहे थे
उनसे बचा तो भिखारी और किन्नर ने परे शान कर दिया
हॉ मरीन ड्राइव का नजारा तो देखने लायक था
विशाल समुद्र लहलहा रहा था.
चारो तरफ गगनचुंबी इमारतें थी
पर समुद्रतट के किनारों पर कचरों का अंबार लगा था
इसलिए पानी के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई
घूमते - घूमते शाम हो गई थी
हैंगिग गार्डन ,बुढियॉ का जूता ,बाबुलनाथ मंदिर
रात होते- होते रोशनी से सब जगमगा उठा
सागर के पानी में रोशनी झिलमिला रही थी
अब वापस होटल चलना था
किसी तरह पहुँचा
रास्ते में खिडकी से दोनों तरफ देखता रहा
कहीं गगनचुंबी अट्टालिकाएं
तो कहीं टिमटिमाती रोशनी में बैठी- सी झुग्गियों का रेला.
कुछ तो वही पटरी पर बैठ शौच कर रहे थे
तो कुछ हाथ में डब्बे लेकर जा रहे थे
यह हमारे भारत की आर्थिक राजधानी है
उसका यह हाल
तो छोटे कस्बों और शहरों का क्या होगा
अचानक स्टेशन आने की घोषणा होने लगी
खडे होकर भीड के धक्के से आगे बढा
और कब उतर गया ,पता ही नहीं चला
अभी तो और स्थल देखने बाकी थे
यह सोचते चल पडा

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