मैं एक पढी- लिखी महिला
थोडा बहुत अंग्रेजी भी जानती हूँ
फिर भी डर लगता है ए टी एम का प्रयोग से
मोबाइल भी अभी बराबर ऑपरेट नहीं कर सकती
कहीं कोई गलत बटन न दब जाय
कारण कि इसकी आदत नहीं है
आधी उम्र पार करने के बाद हाथ में मोबाईल
पैसे का लेन- देन चेक से
बच्चों को सिखा दिया पर स्वयं??
आज तीन साल का बच्चा भी यह सब आसानी से कर सकता है
वह इस युग में जी जो रहा है
पर हमारा समय अलग था
डर से जीते थे
नोटबंदी होने से खर्च कम कर दिया
पर पे टी एम का उपयोग नहीं
आज भी काली- पीली टेक्सी का इस्तेमाल
ओला - उबर की हिम्मत नहीं होती
एप को डाउनलोड भी नहीं करना है
कौन झंझट मोल ले
यह मानसिकता है हमारी
हर मौके पर हम रूपयों का उपयोग करते हैं
बडो का आशिर्वाद हो या बच्चों को उपहार
सब्जी ,अनाज ,दूध हर जरूरतमंद की चीज
कामवाली हो या पेपरवाला
हम कैसे कैशलेश हो जाएगे???
रातोरात यह संभव नहीं है
राजीव गॉधी ने आई टी के युग की शुरूवात की
आज युवा अपना परचम फहरा रहे हैं
पर यह स्वाभाविक ढंग से हुआ
किसी पर लादा नहीं गया था
आज तो जीवन मुश्किल बन गया है.
डिजिटल होना चाहिए
पर जबरदस्ती लादकर नहीं.
जीवन दूभर कर नहीं
आज जैसे हर हाथ में मोबाईल है
डिजिटल का भी समय आएगा
व्यक्ति की फितरत है जीवन आसान बनाना
पर कुछ इसमें सहज नहीं है
अगर यह क्रांति है तो भी उसके लिए भी समय लगता है
साधारण जनता की परेशानियों को समझा जाय
पहले सब साक्षर हो बाद में डिजिटल हो
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