येशु या ईश
दोनों ही पूजनीय
दोनों के जन्म पर जश्न
खुश होना ,गाना- झूमना
दोनों ही रक्षक
किसी के नाम पर मोमबत्ती तो किसी के नाम पर दिपक
उजाला और प्रसन्नता हर ओर
भजन हो या सांग
पर पुकारना तो उसे ही है
लोगों का मिलना- जुलना
केक हो या मिठाई
मुँह तो मीठा ही होता है
एक का जन्म अस्तबल
दुसरे का तो गाय के बिना कल्पना ही नहीं
क्रिसमस हो या जन्माष्टमी
रात को बारह बजे चर्च की घंटी भी बजती है
और जन्माष्टमी को बारह बजे मंदिर में भी जश्न
सब अपने - अपने ईश्वर को याद करते हैं
फिर आपस में दुराव क्यो???
एक - दूयरे को नीचा दिखाने की कोशिश क्यों!?
प्रसाद लेने में भी परहेज
मिठाई समझ कर ही खा लिया जाय.
खुदा तो खुदा ही है
वह किसी का भी हो
सर्वशक्तिमान के चरणों में तो झुकना ही है
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