एक बार फिर प्रतीक्षा है क्रिकेट मैच की
सबकी निगाहे इस पर टिकी है
यह केवल पहली बार नहीं है
हमेशा से यह रोमांचक रहा है
चैंपियस ट्राफी का फाइनल मैच
मैदान क्रिकेट का होता है पर देखा जाय तो वह जंग का अखाडा बन जाता है
लगता खिलाडी नहीं योद्धा है
सभी की निगाहे लगी है कौन जीतेगा
विराट के जाबांज रहेगे तो पाकिस्तान के भी धुरधंर
यह खेल मर- मिटने का होता है
नहीं जीते तो दोनों देशों के खिलाडियों को भी जनता केआक्रोश का सामना भी करना पडता है
दर्शक आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता
पर यह सही है क्या???
बहुत विवाद भी रहता है खेले कि नहीं??
क्योंकि एक तरफ तो आंतकवादी हमला
और दूसरी तरफ खेल
यह तो साथ- साथ नहीं रहता
खेल डिप्लोमेसी भी काम नहीं कर रही
पर खेल ,खेल है
खिलाडी में स्पोर्टसमैन की भावना भी रहती है
पर यहॉ यह भी देखने को नहीं मिलता
जुबानी जंग भी शुरू हो जाती है
आजकल तो ट्वीटर भी एक माध्यम हो गया है
पर यह सही नहीं है
खेल को खेल ही रहने दिया जाय
लोग तेंडुलकर को भी पसंद करते थे
और रावलपिंडी एक्सप्रेस शोएब को भी
मियादाद के बल्ले के हर लोग कायल थे
यहॉ तक कि धोनी के बल्ले के साथ लंबे बालों के भी
पर दिन ब दिन कटुता बढती जा रही है
खिलाडी खेल की भावना से खेले
खेल में हार- जीत तो होती है
इसे दर्शक भी स्वीकार करें
यह जंग का मैदान नहीं खेल का मैदान है
कोई हारेगा तो कोई जीतेगा
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