प्रियंका चोपडा से बर्लिन में हुई मुलाकात आज चर्चा का विषय बन गया है
उनका पहरावा और बैठने का ढंग उचित नहीं था
पर यह तय करनेवाले लोग कौन होते हैं
भारतीय संस्कारों की दुहाई देकर टिप्पणी करना
क्यों साडी या सलवार- कुरता पहनने वाले ही संस्कारी होते है
इसका कोई मापदंड है क्या ??
बुरखे और घूंघट में औरतों को रहना चाहिए
यह मानसिकता किसने बनाई है
वह सुरक्षित पर्दे में रहने से नहीं बल्कि औरतों की तरफ देखने का दृष्टिकोण बदलना चाहिए
आज तैराकी ,कुश्ती ,अभिनय में लडकियॉ आ रही है
तब वह भारतीय पहरावा पहनेगी तो कैसे काम चलेगा
भारतीय परिधान पहन कर तो दौड नहीं लगा सकती
प्रियंका ने क्या पहना और किस तरह बैठी
इसकी अपेक्षा भारत की बेटी विदेश में भी अभिनय के क्षेत्र में पैर रख चुकी है
इसका अभिमान होना चाहिए था
यह भारत के प्रधानमंत्री से भारत की बेटी के रूप में मुलाकात है
हिन्दूस्तान बदल रहा है
तो सोच ,पहरावा भी बदलेगा ही
वैसे भी जीवन अपने ढंग से जीने की सबको आजादी है
वैसे हॉ - आजकल टेलीविजन सीरियल में ही भारतीय नारी का जो मापदंड तय किया गया है
वह दिखाई देता है
वास्तविकता कुछ और है
औरत घर से बाहर निकल रही है
अपनी शर्तों पर जी रही है
इस बात को स्वीकार करना आवश्यक है
समय से कदम मिलाकर ,विकास की राह चलकर और दूनियॉ को अपनी काबिलियत दिखानी है
न कि कपडो और संस्कारों के विवाद में पडना है
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