आ गया जून उमडते - घुमडते बादलों को लेकर
काली- सफेद घटाएं छा रही
कोयल भी कूक रही
पपीहा भी बोल रहे
आम तो अपने पूरे शबाब पर
पक कर टपक रहे
अब कौआ रोटी का टुकडा लेने नही आ रहा
वह तो आम के पेड पर ही विराजमान है
खा रहा और गिरा रहा
धरती भी हरियाली की चादर ओढने को आतुर
हवा भी मस्ती में
पक्षी अपने घोसले बनाने में व्यस्त
बच्चे भी बाकी बची छुट्टियों का आंनद लेने में मस्त
पाठशालाएं खुलने के इंतजार में
सब तैयारी में व्यस्त
क्या जीव क्या मनुष्य
जून आया है साथ में सुकुन लाया है
अब तो प्रतीक्षा खत्म होगी
मौसम भी सुहावना और खुशगंवार होगा
बरखा भी होगी
सब तृप्त होगे
पेड- पौधे डोल उठेगे
नदी - तालाब भर उठेगे
समुंदर में लहरे उफान पर होगी
फूल और कली मुस्कराएगे
हर पत्ता और फुनगी डोलेगी
पेड और पौधे भी झूमेगे
क्या बच्चे क्या जवान सब खुश होगे
वातावरण ताजा और टवटवीट होगा
जून आता है तो खुशियॉ भी लाता है।
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