किसान अन्नदाता है मतदाता नहीं
आज सरकार ने उनकी मांग भले ही मान ली हो
पर यह क्या अस्थायी नहीं है??
कब तक उनका कर्ज माफ किया जाता रहेगा
अन्नदाता इतना लाचार क्यों है??
दूसरों का पेट भरनेवाला अपने ही परिवार का पेट भरने में असमर्थ
हमेशा सरकार की दया पर रहने को मोहताज
आलू दो रूपए किलो और चिप्स दो सौ रूपए
मकई का भुट्टा दो रूपए
पॉपकार्न का पैकेट दो सौ पैकेट
टमाटर दो रूपए किलो
प्याज पचास पैसे
लागत न मिलने पर फेकने को मजबूर
टमाटो सॉस दो सौ रूपए किलो
इसके लिए हर कोई जिम्मेदार है
सरकार ,आम इंसान और स्वयं किसान भी
किसान का समर्थन तो लोग करते हैं
दया भी दिखाते हैं
पर सब्जी कौडियों के दाम ही चाहिए
दूध सस्ता ही चाहिए
भले मिनरल वॉटर बीस रूपए में ले
सातवां वेतन आयोग चाहिए
पर फल का दाम तो सदियों पुराना चाहिए
मंहगाई तो सबके लिए बढती है फिर किसान के लिए क्यों नहीं??
सरकार आम जनता को खुश करना चाहेगी
मंहगाई बढेगी तो आम जनता त्रस्त होगी और सरकार जाएगी
प्याज केवल रूलाता ही नहीं है
यह तख्ता पलटने की ताकत भी रखता है
अतीत इसका गवाह है
दोष किसान का भी है
वह अपना महत्तव समझे
आत्महत्या को छोड नया मार्ग ढूढे
अपनी पैदावार को औने- पौने का भाव न लगने दे
सब एकजूट हो
नई तकनीकी और नया रास्ता खोज निकाले
बिचौलिए नहीं स्वयं आगे आए
हम पेट भरते हैं लोगों का
यह एहसास कराए
अपनी शक्ति पहचाने
हमारी मेहनत का अपमान नहीं सम्मान करे
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