Sunday, 2 July 2017

बडों की अवहेलना मत करो

बचपन में एक कहानी पढी थी वह अचानक याद आ गई
एक नौजवान था और घर में बूढें पिता थे
पिता जी हर समय टोका टोकी करते थे लडका झल्ला जाता था
हालांकि वह पिता से बहुत प्रेम भी करता था
उनकी देखभाल भी अच्छी तरह से करता था
एक बार लडके का एक दोस्त आया मिलने के लिए
पिताजी के पूछने पर उसने बता दिया
कुछ समय के बाद दोस्त चला गया
पिताजी ने फिर उसके बारे में पूछा
लडका झल्ला गया
और बोल पडा -- चुपचाप पडे क्यों नहीं रहते
क्या बार- बार पूछते हो
पिता  का मुँह उतर गया
मायूस होकर बोले -- बेटा जब तुम छोटे थे , एक बार एक कव्वा आकर खिडकी पर बैठा
तुमने पूछा --- कौन है??
मैंने हर बार प्रेम से उत्तर दिया --- कौवा है
और यह केवल एक ही वाकया नहीं
न जाने कितने?? उसकी तो गिनती भी नहीं हो सकती
लडके को अपनी गलती का एहसास हुआ
आज इस कहानी के याद आने का कारण
जब मॉ टोकती है तो बुरा लगता है
पर यह भूल गई कि
बच्चे चाहे कितने भी बडे हो जाय
मॉ- बाप के लिए बच्चे ही होते हैं
न जाने उन लोगों ने हमारी कितनी जायज और नाजायज मांगों को माना
पाला- पोसा और अपने पैरों पर खडे होने लायक बनाया
आज वे कमजोर है
सुनने औ देखने तथा स्मरणशक्ति कमजोर हो गई है
तब यह हमारा भी कर्तव्य बनता है कि
उम्र के इस पडाव पर उनसे प्रेम से पेश आए
वे हमारे जनक है
आप कितना भी प्यार करें पर उनको महसूस भी कराए

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