एक सज्जन थे ,थोडा घुमक्कडी स्वभाव के थे
जब भी फुर्सत मिलती ,अपना बोरियॉ- बिस्तर उठा सैर पर निकल पडते
एक बार की बात है वह कहीं गए थे ,ट्रेन से यात्रा कर रहे थे
उनको प्यास लगी ,पानी लेने के लिए नीचे उतरे
किसी से बात करने लगे
सीटी की आवाज से ध्यान भंग हुआ
भागे पकडने के लिए पर भारी शरीर कहॉ से दौड पाते ट्रेन की रफ्तार में
वीरान इलाका था पता चला कि अब दूसरी ट्रेन एक दिन के बाद है
कहॉ गुजारेगे दो दिन
कोई होटल या सराय भी नहीं था आसपास
चल पडे सामान ले इधर- उधर देखते हुए कि कहीं ठिकाना मिल जाय
अचानक चलते- चलते उनको एक झोपडी दिखाई दी
मन में कुछ आस जगी
बाहर से आवाज लगाई-- कोई है??
फटे- पुराने कपडे पहने एक व्यक्ति बाहर आया
उनहोंने अपनी परेशानी बताई
व्यक्ति ने उनको कहा कि आप मेरे यहॉ रह सकते हैं
पिछवाडे वाले भाग में उनका इंतजाम कर दिया
उनको टूटी- फूटी खटियॉ और मटमैले बिस्तर भी दिए
शाम हुई तो वह खाना लेकर आया
भूख तो लगी ही थी
उन्होंने उसकी मोटी रोटी और चटनी स्वाद लेकर खाई
ऐसा तो स्वाद पंचसितारा होटल में भी नहीं मिला था
सोचने लगे बिना कुछ मांगे यह इतना कर रहा है
अतिथि देवो भव - इन्हीं की वजह से कायम है
सुबह ऑख खुली तभी उन्होंने देखा कि एक अच्छे कपडे पहने हुए रौबदार व्यक्ति झोपडी में प्रवेश कर रहे हैं
अंदर से खुसर- पुसर की आवाज सुनाई दे रही थी
उन्होंने पतरे के झरोखो से झॉका तो वह अमीर व्यक्ति उसको डाट रहा था
और यह हाथ जोडकर गिडगिडा रहा था
पैसे नहीं है साहब ,मिलते ही दे दूंगा
उसके आगे उन्हें कुछ देखने की जरूरत न रही
वह सब समझ गए
जाते समय अपने बटुए से कुछ पैसे निकाल बटुआ वहीं रख दिया
ताकि उसको लगे कि वह भूल गए हैं
उसको पैसा भी मिल जाय और उसका स्वाभिमान भी बना रहे
बिना मांगे- विचारे ,गरीब होने पर भी उनकी मेहमान नवाजी की
उसका ईनाम तो मिलना ही था
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