भाषा नहीं भाव होना चाहिए
मन की भावनाओं को समझना है
मन अगर भावों से भरा हो
वहॉ बिना बोले ही काम चल जाएगा
मूक पर प्रेम की भाषा तो पशु भी समझ जाता है
भाषारूपी विवाद में प्रेम बाजी मार ले जाता है
बचपन में बच्चा भाषा नहीं
प्यार की बोली और स्पर्श पहचानता है
प्रान्त और देश की क्या बिसात??
यह तो स्वयं का बुना मकडजाल है
जिसमें व्यक्ति फंस गया है
एक ही भाषा बोलने वाले आपस में मित्र हो
यह भी जरूरी नहीं
चाहे कोई भी रिश्ता हो निभाना आना चाहिए
पति- पत्नी , पडोसी या फिर सहयात्री
भाषा दूर करती है
भावना पास लाती है
भाषा का महत्तव तो है , उससे तो इन्कार नहीं
पर इतना तवज्जों भी न दिया जाय कि आपसी मतभेद का कारण बने
पर परिस्थिति विपरीत है
भाषा के नाम पर अलगाव हो रहे हैं
दंगे - फसाद हो रहे हैं
भाषा ईश्वर की सबसे बडी देन मनुष्य को है
लिखने ,सोचने- विचारने ,इतिहास को जानने
संस्कृतियों और विरासत का आदान- प्रदान
सब तो यही करती है
भाषा का काम तो जोडना है तोडना नहीं
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