संबंधों को रोग लग गया है
उसे इलाज की जरूरत है
माता - पिता बच्चों को डाट नहीं सकते
दंडित नहीं कर सकते
बहन चिढा नहीं सकती
अगर हुआ तो बच्चा उनकी जान ले सकता है
नोयडा में यही हुआ है
१६ साल के किशोर ने मॉ - बहन की इसी कारण हत्या कर दी
यहॉ दोष केवल बच्चे का ही नहीं है कहीं सारा समाज तो जिम्मेदार नहीं है
इतनी अपेक्षा छोटी उम्र से कि वह तनावग्रस्त हो जाता है
उसे व्यक्ति केन्द्रित बना दिया जाता है
उसे किसी बात की ना सुनने को नहीं मिलती
हर ईच्छा पूरी की जाती है
कोई कुछ बोल नहीं सकता यहॉ तक कि आज शिक्षक को भी यह अधिकार नहीं है
घर के बडे बुजुर्गों का मॉ - बाप ही आदर नहीं करते
संयुक्त परिवार तो बचा ही नहीं
परिवार के नाम पर. हम दो हमारे दो या एक
एक जमाना था जब पडोसियों का भी बच्चों पर अधिकार होता था
शिक्षक न जाने कितनी उठक- बैठक लगवाते थे
पिताजी का गुस्सा हम पर नहीं मॉ पर उतरता था
मॉ की ऑखों में हमारे कारण ऑसू देख हम दुखी हो जाते थे तथा सोचते थे अब दुख नहीं देगे
मित्र ,रिश्तेदार , चाचा ,बुआ ,दादा - दादी न जाने कितने रिश्ते होते थे
आज वह रिश्ते कहॉ है??
हम ही खत्म कर रहे हैं
कोई आ गया तो मुँह बन जाएगा
भावनाए तो मर गई है
मॉल में , रिसोर्ट में जाकर आंनदित होगे पर अपनों के बीच नहीं
बच्चे को भी सबसे दूर रखा जाता है
त्योहार या शादी - ब्याह में जबरन संबंध निभाया जाता है
कोई किसी को स्वीकार करना नहीं चाहता
तब बच्चे कैसे स्वीकारेगे
इन सब का दोषी बच्चा ही नहीं
समाज , परिवार भी दोषी है
इतनी क्रूरता कि मॉ - बहन की हत्या कर दे डाटने पर
यह तो खतरे की घंटी है
अभी तो इक्का - दुक्का घटनाएं दिख रही है ,आगे परिणाम और भयंकर होगा
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