यह किसी एक बेटी की व्यथा नहीं
भारत की लाखों - करोडो बेटियों की व्यथा
बेटियॉ घर- बाहर और सार्वजनिक स्थान पर भी असुरक्षित
मर्दों की इतनी हिम्मत कि हवाई जहाज जैसी जगह पर लोगों के बीच इस तरह का व्यवहार
बेटी पढाओ - बेटी बचाओ
बेटी का बाहर निकलना मुश्किल तो पढेगी और आगे कैसे बढेगी ????
हम तो यह सोचते थे कि ट्रेन - बस में ऐसी घटनाएं होती है पर हवाई सफर में भी
पहला दर्जा , दूसरा दर्जा का टिकट छोड ए सी का टिकट लेने पर भी वही हाल
कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं
घर से निकले और न जाने कौन - सी वारदात घट जाए
घर वाले चिंतित जब तक सही सलामत घर न पहुंच जाए
बेटी ही क्यों बेटे के लिए भी मन डरता है
वह भी तो सुरक्षित नहीं
न जाने बच्चों के साथ पाठशाला - विधालय में ऐसी कितनी घटनाएं घट चुकी है
ऐसी विकृत मानसिकता वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए
किसी बेटी को इस तरह सिसकना न पडे
यह बेटी तो एक सेलिब्रिटी है पर न जाने कितनी बेटियॉ सामने न आ पा रही होगी
घर बैठ कर सिसक रही होगी
बदनामी के डर से चुपचाप बैठ जाती होगी
कोई मदद को नहीं आता , इसमें भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए
लोग डरते हैं
व्यवस्था ही ऐसी बन गई है , मुँह खोलने वालों के भी दस दुश्मन बन जाय
पुलिस और दंबंगों के कारण परेशान हो जाय
कौन सुरक्षा की गांरटी लेगा
बहुत बडा प्रश्न चिन्ह है कानून व्यवस्था पर
हर व्यक्ति डरा - सहमा सा है
स्वतंत्र तो है पर ऐसी आजादी
इस आजादी से तो तानाशाही भी ठीक होगी
जब घर से बाहर निकलने में डर हो
तो घर में रहना भी तो एक तरह की कैद है
किस पर विश्वास किया जाय , किस पर नहीं
कहॉ जाया जाय , कहॉ नहीं
घर से कब निकला जाय और कब आया जाय
ऐसी बंधन भरी जिंदगी एक प्रकार की गुलामी ही है
विकास का राग अलापने वाले हमारे नेता समझे कि किसी भी विकास का रास्ता डर से होकर नहीं गुजरता
यह केवल झायरा वसीम की नहीं
हिंदूस्तान के हर व्यक्ति की व्यथा है
समय पर निवारण न हुआ तो ऐसी घटनाएं घटती रहेगी
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