मेरी कामवाली बाई एक दिन नहीं आई , दूसरे दिन आने पर पूछा कि कहॉ गई थी . कल आई नहीं बोलकर तो जाना था
उत्तर मिला अरे ,मेमसाब शिरडी गई थी जो हमारी एरिया का नगरसेवक है न वह सब चालीवालों को लेकर गया था
खाना - पीना ,रहने का ,जाने का सब इंतजाम उसने ही किया था
पर क्यों ?!?. वोट मिलता है न
जीतकर आता है वह
हम लोग को बडे- बडे नेता के भाषण में भी ले जाता है
वहॉ बडा- पाव ,पूरी भाजी , शरबत सब मिलता है पेट भर कर
ऊपर से पैसा भी मिलता है
तो वोट किसको देगे
उसको ही और किसको मेमसाब
अब इतना करता है और वोट के भी पैसे मिलते हैं तो उसको ही देंगे
नमकहरामी नहीं कर सकती कि खाए उसका और वोट किसी दूसरे को
वो तो देखने नहीं आता है पर फिर भी
और विकास का क्या ??
विकास से अपुन को क्या लेना - देना
अपुन का झोपडा न टूटे
बिजली - पानी मिले
संडास और गटर साफ रहे
काम मिलता रहे चौका - भांडी का
बस बहोत है
विकास कहीं खडा सिसक रहा था , विकास के नाम पर ही चुनकर आने वाले नेतागण की धज्जियॉ उड रही थी
कुछ पैसों में इनको खरिदकर अपना और परिवार का विकास कर लिया जाता है
यह सब हर चुनाव में चलता है चाहे वह ग्राम प्रधान का चुनाव हो या बडे स्तर के नेता का
खूब मालामाल हो जाते हैं और जनता समझती है कि हमने इनको नेता बनाया है पर वह यह नहीं समझती कि इन्होंने हमें बेवकूफ बनाया है
पहले नेता इनके इर्दगिर्द घूमते हैं
सत्ता मिल जाने पर जनता इनसे मिलने का इंतजार करती है पर तब वह व्यस्त हो जाते हैं
काम कराने पर पैसे देना पडता है
पहले ये हाथ जोडते हैं बाद में जनता इनकी हाथ - पैर जोडती है
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