हँसना बहुत जरूरी है
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी
पर इसके भी तो कुछ पैमाने है
कब और कहॉ हँसना , किस तरह से
वही बात मजाक पर भी लागू होती है
अंधे का पुत्र अंधा
यह साधारण बात नहीं थी
पांचाली द्वारा किया गया दुर्योधन पर व्यंग्य था
ईश्वर की रचना का मजाक
अपने चाचा श्वसुर का अपमान
परिणाम तो होना ही था
भरी सभा में चीर हरण
दुर्योधन कोई महात्मा नहीं था कि भूल जाता
आज संसद में भी यही हो रहा है
पहली बात तो रेणुका चौधरी का हँसना गलत था
प्रधानमंत्री पद की गरिमा होती है
वह सबके प्रधानमंत्री है
दूसरी मोदी जी स्वयं पर नियत्रंण नहीं कर पाए
रामायण सीरियल को घसीट लाए
कटाक्ष किस पर था और तुलना किससे हुई
यह बिना बोले ही पता चल गया
अब तो वार पर वार हो रहे हैं
सूपरणखा का वीडियो भी आ गया
संसद में यही सब होना चाहिए??
किसी पुर्व प्रधानमंत्री को रेनकोट पहनाना
खोज- खोज कर अतीत के गडे मुरदे निकालना
उस समय की परिस्थितियॉ को जाने बिना उनको कुछ भी कहना
उनके त्याग - बलिदान की धज्जियॉ उडाना
यह तो देश का विकास नहीं है
नारी की मर्यादा का किसी को परवाह नहीं
मजाक गंभीर विषयों पर नहीं होता
यह हल्का मजाक नहीं है
हँसने वाले और उस पर प्रतिकार करने वाले को
दोनों को मर्यादा में रहना चाहिए
देश के नुमाइन्दे है ये लोग
पटेल और नेहरू की बात करते समय उन नेताओं जैसा बनने का प्रयत्न करें
तो भारत का विकास होगा
तोहमत लगाने और मजाक - हँसी उडाने से नहीं
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