किसानों की पदयात्रा
मुख्यमंत्री तक पहुंचने की कोशिश
सफल भी रहे
आश्वासन भी मिला
मांगे पूरी होगी
संतुष्ट हो वापस लौटे
खुश भी होंगे
पैरों में छाले पडे
धूप में नंगे पैर चलते
लोग दुखी हुए
यह दशा देखकर
अन्नदाता इतना लाचार
पैर में पहनने के लिए चप्पल खरिदने के मुहाल
दुख हुआ फोटो डाले गए
पर अपने गिरेबान में झॉककर किसी ने देखा
प्रकृति तो उसके साथ ऑखमिचौली करती ही है
हम तो उससे भी आगे??
हमारा वेतन तो निश्चित है
पर उसका टमाटर
कभी ६० रूपए तो कभी ६० पैसे
व्यापारी और बिचौलिए की तो बल्ले - बल्ले
पर बीज और खाद डालने वाला
पसीने बहाने वाला
उसका क्या???
जरा सोचिए ़़़़़़़़
उनका घाव देखकर हमारा घाव हरा हो गया
उनकी चोट देखकर हमारे दिल पर चोट लगी
डॉक्टरों ने मरहमपट्टी भी की
आज खून देखकर हम विचलित हो गये
वह तो हनेशा खून को पसीने के रूप में बहाता रहा है
किसान आत्महत्या कर रहा है
गॉव छोडकर शहर पलायन कर रहा है
जिंदगी ही छोड रहा है
नई पीढी खेती नहीं करना चाह रही है
इतनी मेहनत - मशक्कत वह नहीं कर सकती
मोबाईल- मोटरसाईकिल पर घूम रही है
आगे बढना और सुविधा तो सबकी जरूरत है
वसुधैव कुंटुब की भावना नहीं रही
सुजलाम - सुफलाम देश की यह हालत
यह घाव किसान का नहीं
देश पर है
इस घाव की मरहमपट्टी समय पर न की गई
तो यह घाव नासूर बन जाएगा
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