Thursday, 24 May 2018

नेता बिकता है खरीदोगे

आजकल नेता बिकते हैं
खरीदार होना चाहिए
सही कीमत लगाना चाहिए
कौन सा पद ,विभाग
मालामाल और मलाईदार
करोड़ों की बोली
ईमान बेच कर खा जाते हैं
जनता के साथ वादें
धरे के.धरे रह जाते हैं
कल तक जिसकी बुराई
आज उसी की.गोद मे जाकर बैठना
दल बदल का.खेल चरमसीमा पर
किसी पर विश्वास नहीं
जो स्वयं भ्रष्टाचार मे लिप्त हो
वह दूर क्या करेगा
राजनीति मे तो जम कर भ्रष्टाचार का बोलबाला
जब नेता ऐसा तो उसका नेतृत्व कैसा होगा
जनता बेचारी फस जाती है
उसे भी तो लालच दिया जाता है
पैसे पर वोट खरिदे जाते हैं
मांस -मदिरा और पैसे का खेल
शुरू होता है यही से खेल
खरीद /फरोख्त बढती जाती है
नेता गर्व से कहते हैं
इतना खर्च किया है
तो वसूली कैसे होगी
गांव के प्रधान से लेकर ऊपर तक
सेवा करना नहीं पैसा कमाना उद्देश्य
एक बार सत्ता का स्वाद चख लिया
फिर तो आजीवन यही करना है

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