कब से थी मौसम से गुजारिश
कब आएगी बरखा बहार
कब पड़ेगी पानी की फुहार
कब होगी रिमझिम बरसात
कब हम बन जाएंगे बच्चे
कब लौटेगा हमारा बचपन
कब हम प्रियतम के हाथों मे हाथ डाल
बरखा की बूंदों को महसूस करेंगे
छाते की ओड़ मे सारी दुनिया से बेखबर
कब हम मनमोहक दृश्य को निखरेंगे
घर बैठ काम से छुट्टी ले
चाय-पकौड़े का आनंद लेंगे
कब हम कांपते -लरजते हाथों से
बरखा की बूंद समेटने का प्रयास करेंगे
बरखा रानी आज पधारी है
हर उम्र की याद साथ लाई है
धरती को तृप्त कर रही है
हरियाली की सौगात साथ मे देती
तन-मन पर छा जाती है
स्वयं तो मौज उडाती
हमकों भी मनमौजी बना जाती है
फकृति झूमती
मोर नाचता
काले बादल उमड़ -घुमड़ कर आते
रह-रह बिजली चमकती
सब कुछ धो जाती
वातावरण को स्वच्छ कर जाती
नदियां मन भर उफनती
कुएं बाहर आने को मचलने
झरने अपनी रफ्तार पकडते
समुद्र भी खूब उछलता
कहता तुम भी सीमा तोड़ बाहर आओ
बरखा रानी पधारी है
जी भर स्वागत करो
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