गुरु यानि शिक्षक
पर धीरे धीरे समझ
वक्त सबसे बड़ा गुरू
शुरू मे माता ,घर के सदस्य
पाठशाला मे शिक्षक
आगे जब जिंदगी बढती है
तब लगता है हर पल
कोई न कोई हमें सिखाता है
हम सीखते रहते हैं
रास्ते चलते तक
हर अनुभव
कुछ खट्टे ,मीठे ,कड़वे
पर एक एक सबक हम यही से सीखते हैं
जिंदगी बहुत बडी है
इसलिए शिक्षा भी ताउम्र चलती रहती है
किसी पडाव पर लगता है कि
हमसे तो यह छूट गया
कभी धोखा
कभी विश्वासघात
कि हम विस्मित रह जाते हैं
होशियारी धरी की धरी रह जाती है
कोई हमे ठग जाता है
फिर लगता है कि
कुछ छूट गया
आज उन सभी का आभार
जिसने जीवन की पाठशाला मे जीना सिखाया
अच्छा-बुरा ,उचित-अनुचित का भेद समझाया ।
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