Sunday, 1 July 2018

बीज जो वृक्ष बना

एक बीज पडा मिट्टी में
बारिश हुई अंकुर फूटे
ची ची करती आई चिडिया
चोच मारने जा ही रही
अंकुर बोल उठा -  मुझे मत खाओ
बडा होने दो ,तब खाना
चिडिया चड गई
पौधा बडा हुआ कुछ
बकरी आई ललचाती
फिर वही बात कही पौधे ने
बकरी कुछ सोची और चली गयी
और बडा हुआ
एक व्यक्ति को पसंद आया
उखाडने वाला ही था
पौधे ने फिर वही बात दोहराई
वह भी चला गया
दिन -महीने बीते
सब वापस आए उसी जगह
भरी दोपहरी थी
एक बडा छायादार पेड दिखा
सुस्ताने लगे
सोचने लगे
वह पौधा कहाँ गया
यही तो था
पेड मुस्करा उठा
हिल-हिलकर हिलकोरे ले
कह  उठा
मै वही हूँ बीज ,कोंपल , पौधा
आज खडा हूं
लहलहा रहा हूँ
सबको छाया दे रहा हूँ
सब एक-दूसरे को देखने लगे
मुस्कराकर अपने -अपने रास्ते हो लिए

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