आपसी सहमति से बनाया गया विवाहेतर यौन संबंध अब अपराध नहीं रहा
नया युग है
सभी को अधिकार है अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का
औरत और मर्द को समानता का दर्जा
लेकिन क्या यह उचित है
परिवार जैसी संस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा
बच्चों पर इसका क्या असर होगा
सारा डर और भय खत्म
अब सब खुले आम
यह तो और खतरनाक साबित होगा
मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी बरसों पहले पढी थी
नाम तो याद नहीं
पर वह वाक्य याद है
औरत कितना भी झगड़ा कर ले ,उपद्रव मचा ले ,घी का घड़ा लुढ़का दे
मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर.लेगा
पर व्यभिचार नहीं
आज सुप्रीम कोर्ट ने अवैध संबंधों को जायज ठहरा दिया है
स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता तो कदापि नहीं
पुरूष हो या स्त्री
उसे तो बहाना मिल जाएगा
पर बहुत से घर और परिवार तबाह हो जाएंगे
हमारी भारतीय संस्कृति जो विवाह को ईश्वर का तय किया हुआ संबंध मानती है
पति के लिए मंगलकामना की जाती है
पति या पत्नी का पराया संबंध समाज स्वीकार नहीं करता
इस निर्णय से व्यक्ति गत स्वतंत्रता तो प्राप्त हो जाएगी
पर विवाह संबंध से विश्वास उठ जाएगा
मन मे हमेशा भय बना रहेगा
परिणाम भी औरत को ही भुगतना पड़ेगा
क्योंकि हमारे यहाँ अभी भी पत्नी और बच्चे पति और पिता पर ही आश्रित है
अभी इतना बदलाव नहीं आया है कि सब आत्मनिर्भर हैं
कुछ को अच्छा लगा होगा
निजता का हनन नहीं होगा
पर जीवन केवल अपना ही.
हम सबसे जुड़े हुए हैं
पर अगर पूर्ण रुप से विश्लेषण किया जाय तो यह फैसला फायदेमंद नहीं साबित होगा
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