सबरीमाला मंदिर मे दस बरस से लेकर. पचास बरस की महिला का प्रवेश निषिद्ध था
पर आज सुप्रीम कोर्ट का निर्णय काबिलेतारीफ है
भगवान के मंदिर मे भी भेदभाव
पुरूष और नारी दोनों की रचना ईश्वर की
पर एक को कमतर क्यों आका जाय
उसे अछूत क्यों माना जाय
रजस्वलावस्था मे भी उससे भेदभाव
जबकि वह जननी है
यह होना तो उसका सौभाग्य है
ईश्वर ने शरीर का निर्माण किया है
वह भी हर चीज की अधिकारी है
फिर वह ईश्वर का दरबार क्यों न हो
कुछ तथाकथित लोगों ने ऐसी परम्पराओं को बनाया
और बरसों तक औरत को क्या
बहुत से लोगों को धोखे मे रखा
परम्परा के नाम पर बरगलाया
परमात्मा सबका है
और उसके दर्शन से वंचित करने का किसी को अधिकार नही
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