बचपन मे समुद्र किनारे घूमने जाते थे
उस समय चौपाटी की रेत पर हम घर बनाते थे
सबका अपना अपना
होड़ लगती थी कि किसका सबसे अच्छा
उसको सजाते थे
गुब्बारे लगाते थे
डिजाइन अलग अलग
जाते समय लात मार जाते थे
दूसरा कोई अपना बना न ले
पर यह तो रेत का घरौंदा था
असली घर बनाने में जिंदगी बीत जाएगी
न जाने कितनी मशक्कत करनी होगी
इच्छाओं का त्याग करना होगा
तब जाकर एक घर तैयार होता
घर घर नहीं सपना होता है
उस सपने को सार्थक करना पड़ता है
उसमे रहकर अपने जिंदगी का ताना बाना बुनना
अपने बच्चों के सपनों को भी साकार करना
उनके भविष्य की नींव डालना
इसको तिनका तिनका कर सहेजना
तब जाकर यह घरौंदा तैयार होता
और हम इसे ताउम्र सहेजते हैं
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