डाली से टूटा फूल
फिर कभी नहीं खिलता
डाली मे लगा था
तब अभिमान था
मुझसे ही इसकी शोभा बरकरार
घमंड था अपने सौंदर्य पर
इतराता था
हवा मे झिलकोरे लेता था
सबकी आँखों को भाता
भूल गया था कि
मेरा असतित्व डाली से ही है
जो उससे एक बार जुदा हुआ
फिर तो किस्मत ही पलट गई
ईश्वर के चरणों मे
फिर वहाँ से किसी के घर मे
अब कचरे के ढेर में
पटका गया
सूई से बिंधा गया
धागे की जंजीर मे बांधा गया
डाल पर था तो हौले हौले सहलाता था
कोई तोडने आता तो का़ंटा चुभाता
यहाँ तो किसी को फिक्र नहीं
अपनी जड़ों को कभी छोड़कर जाना नहीं
यही सिखाया है वक्त ने
डाली पर दूसरे फूल आ जाएंगे
पर हमारा तो असतित्व ही खत्म
यहाँ तो कोई माली भी नहीं
बगिया के फूलों की देखभाल करे
बस लावारिस से हैं
और जैसे तैसे सांस ले रहे
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