हर दीवार कुछ बोलती है
अपना इतिहास सुनाती है
दीवार बनी घर की
स्वयं को सुरक्षित करने की भावना
फिर द्वार की ,पड़ोसी की
जमीन की ,गाँव की ,समाज की
शहर की ,देश की
जात-पात की
धर्म -संम्प्रदाय की
रक्त की गोत्र की
सब इसके इर्द गिर्द घूमने लगे
इसने लोगों को बांट डाला
भावना संकुचित हो गई
वृत्ति स्वार्थी बन गई
हम से मैं की भावना
श्रेष्ठता की भावना धर कर गई
पक्षी आकाश की उडा़न भर सकता है
कही भी निसंकोच आ जा सकता है
पर इंसान इन दीवारों में कैद हो गया है
मंदिर ,मस्जिद ,गिरजाघर ने बांट लिया भगवान को
धरती बांटी
सागर बांटा
मत बांटो इंसान को
मानवता और इंसानियत के बीच आने वाली
हर दीवार को धराशायी कर देना है
क्योंकि हर धर्म से ऊपर इंसानियत है
भेदभाव कर कुछ हासिल नहीं हो सकता
जीना है शांति से
ऊपरवाले खुदा को भी जवाब देना है
उसने तो भेदभाव नहीं किया
यह तो हमारा ही बनाया हुआ चक्रव्यूह है
जिसमें हम चले तो गए हैं
पर बाहर का रास्ता पता नहीं ।
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment