Sunday, 16 December 2018

मंजिल इतनी आसान नहीं होती

आज प्लेटफार्म पर खडी थी
अचानक पता लगा
गाड़ी दूसरे प्लेटफार्म पर आने वाली है
सीढियाँ चढ़नी और उतरनी पड़ी
गाड़ी आई पर भीड़
किसी तरह अंदर धक्का मुक्की खाते पहुंची
खडी रही
सब सीट भरी थी
कुछ समय बाद एक सीट खाली हुई
बैठी तब राहत मिली
स्टेशन आया
फिर उतरने की जद्दोजहद
बाहर निकल कर
बस और रिक्शे की परेशानी
अंत मे पहुंच गए
जहाँ जाना था
सहेलियों के साथ पिकनिक थी
सब रमणीय स्थल देखा
मौज मजा किया
फिर थक कर घर वापसी
पर पिकनिक का आनंद तो था
उसके सामने ट्रेन और यात्रा की जद्दोजहद
याद ही न रहा
लगा जीवन भी यही है
हम कुछ पाने के लिए
कुछ बनने के लिए
कितना संघर्ष करते हैं
जब मुकाम हासिल हो जाता है
तब वह संघर्ष याद ही नहीं रहता
बस खुशी रहती है
जबकि हर समय जद्दोजहद करना पडा
यही तो बात है
कि मुश्किलों मे भी मुस्कराते हैं
प्रयत्न करता ही रहते हैं
मंजिल जो पाना है
मंजिल इतनी आसानी से नहीं मिलती।

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