Tuesday, 18 December 2018

राह वही थी हम वह नहीं थे

राह तो वही थी
हम वह नहीं थे
अजनबी लग रहे थे
जहाँ हम धडल्ले से गेट मे घुस जाते थे
आज हिचकिचाहट महसूस हो रही थी
आज गेट के बाहर भीड थी
तब भी हम असहज नहीं थे
अंदर जाते ही सब लोग तो वही थे
पर शायद बदले हम थे
जिस कुर्सी पर बैठे इठलाते थे
आज सोच रहे थे
कहाँ बैठा जाय
कभी यह हमारा था
आज हम मेहमान थे
खातिरदारी भी मेहमानों जैसे
पर वह तो हमारे लिए नया था
हम यहाँ का एक भाग थे
आज वह अभिन्नता नहीं थी
महज औपचारिकता ही थी
दोस्त वही थे
सहकर्मी भी वही थे
अपना पन भी था
कभी बरसों साथ गुजारा है
पर काम मे मशगूल वे
हमारा भी रवैया बदला हुआ
समय जो बदला है
पर लोगों के चेहरे पर मुसकराहट देख
अपने पन से गले मिलते देख
एहसास हुआ
सूरज डूबा जरूर है
पर डूबते डूबते भी आसमान लाल कर गया है
याद अभी भी तरोताजा है
यह मन का भ्रम है
हम अजनबी नहीं
न यह रास्ते अजनबी
बस समय ने करवट ली है
यह तो सच है
जहाँ कभी हम थे
आज वहाँ हम नहीं
बस यादे ही

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