आ गया साठ
पर सत्तर की चिंता हम करते नहीं
हर दिन खुशहाल हो
जीवन मजेदार हो
अब जोड़ना -घटाना नहीं
बूढे हो रहे
यह बेकार मे बोलते नहीं
बिना कारण बाम लगा
चादर मे घुस कराहते नहीं
आप ही बताओ
कुछ करने के लिए उम्र का बंधन जरूरी तो नहीं
हमेशा घर मे बैठा इंसान खुशमिजाज दिखता क्या??
रोजी रोटी के लिए बच्चे घर छोड़ कर जाएंगे ही
अपने काम मे मशगूल रहेंगे ही
तब रिक्तता तो महसूस होगी ही
पर वह स्वीकार करना भी जरुरी
अब नहीं होता
यह रोना हरदम रोते नहीं
नये नये चीजों को सीखना है
घर मे कुढ़ते नहीं बैठते
बगीचे मे टहलने जाते
नाना नानी पार्क मे दोस्तों संग गपशप करते
उम्र भले बढ़ गई
पर रोमांटिक गाने का लुत्फ अब भी उठाते
घुटना गया कमर जवाब दे रही
अब तो हम बूढे हो रहे
इसका रोना रोते नहीं
साठा हुआ तो क्या
हम अब भी दमदार है
हममे भी कुछ बात है
हम आम नहीं खास है
No comments:
Post a Comment