Tuesday, 11 December 2018

धरती माता

हवाई जहाज से सफर
जब उसने उडा़न भरी
जमीन छूटने लगी धीरे धीरे
उत्सकुता हुई
बाहर का दृष्य देखने
बचपन याद आया
खिडकी से बाहर सर निकालते
बस या रेलगाड़ी मे सफर करते समय
टोकने पर वापस सर अंदर
आज फिर नजर गई
विमान काफी उडा़न भर चुका था
नीचे नजर गई
ईमारतें दिखाई दे रही थी
नीचे से एकदम छोटी छोटी
रात का समय था
सब जगमगा रही थी
और कुछ नहीं
बस रोशनी ही नजर आ रही थी
ऊपर से सब एकसमान ही दृष्टिगोचर
लगा आसमान सब पर एकसाथ ही अपनी छत्रछाया
डाल रहा
नीचे जीवन झिलमिला रहा था
सब ऊपर से एक ही जैसे
ईमारत छोटी हो या बड़ी
जीवन सब मे था
पृथ्वी पर चहलपहल
जीवन भी यही है
धरती पर
माता ने सबको अपने मे समा रखा है
वह कोई भेदभाव नहीं करती
फिर वह बडा हो या छोटा
झोपड़ी मे हो या
गगनचुंबी ईमारतों मे
घर हो या बेघर
पर प्यार सब पर  समा

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