पुरानेें एक स्वामीजी थे, जिनका नाम था रामतीर्थ। वे रोज सुबह जल्दी उठते और पूजा-पाठ के बाद भिक्षा मांगने के लिए 5 घर जाते थे। उनका नियम था कि किसी भी घर से खाली हाथ नहीं लौटते थे। कुछ न कुछ लेकर ही जाते थे।> एक सुबह रामतीर्थ भिक्षा मांगने के लिए एक ऐसी महिला के घर पहुंच गए जो हमारे गुस्से में रहती थी। स्वामीजी ने आवाज लगाई कि माता भिक्षा दो। ये सुनकर महिला को और ज्यादा गुस्सा आ गया। उसने स्वामीजी से कहा कि तुम लोगों को भीख मांगने के अलावा कोई और काम नहीं आता है क्या? स्वामीजी ने हंसते हुए कहा कि माता में किसी भी घर से खाली हाथ नहीं जाता हूं। आपसे भी कुछ न कुछ लेकर ही जाउंगा। उस समय वह महिला गोबर से घर लीप रही थी। इस काम में जिस कपड़े का उपयोग कर रही थी, वही गंदा कपड़ा उसने स्वामीजी की झोली में डाल दिया। महिला बोली कि ये ले जा, आज तेरे लिए यही है मेरे पास। स्वामीजी ने आशीर्वाद दिया और वहां से गंदा कपड़ा लेकर नदी किनारे गए। उन्होंने नदी में गंदे कपड़े को धोया, साफ किया। इसके बाद उस कपड़े से दीपक के लिए बत्तियां बना लीं। दूसरी ओर जब महिला का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपने किए का पश्चाताप होने लगा। वह तुरंत ही स्वामीजी के पास पहुंची और अपने किए की क्षमा मांगी। स्वामीजी ने महिला से कहा कि माता आप क्षमा न मांगे। आपने सही भिक्षा दी है। भोजन तो तुरंत समाप्त हो जाता है, लेकिन तुम्हारी भिक्षा से ही मंदिर के सभी दीपक जल रहे हैं।कथा की सीख - इस कथा की सीख यही है कि हमें क्रोधित लोगों के सामने भी शांत रहना चाहिए। जब क्रोध शांत होता है तो सब ठीक हो जाता है। इसके अलावा कोई भी चीज बेकार नहीं होती है। सकारात्मक सोच के साथ उसका फिर से उपयोग किया जा सकता है।
COPY PEST
No comments:
Post a Comment