मैं और मेरा मन अक्सर बातें करते रहते हैं
अगर ऐसा होता तो
अगर ऐसा न होता तो
मैं अक्सर दुविधा मे पड़ जाती हूँ
क्या करू
क्या न करू
क्योंकि यह कभी हाँ कहता
कभी ना कहता
एक ही बात हो तब भी
एक मन कहता
यह सही है करें
दूसरी कहीं से छोटी सी आवाज आती है
छोड़ो यह सब बेकार है
तब मै उस छोटी आवाज के सामने विवश
पर यह सही तो नहीं
फिर सही क्या??
दृढ़ निश्चय
स्वयं से वादा
स्वयं के शब्द
हम उस पर टिके रहे
स्वयं से वादाखिलाफी न करें
अपने शब्दों का मान रखें
उसे अलग अलग शब्दावली मे न उलझाए
मन तो चंचल है
उस पर लगाम लगाना चाहिए
तभी आप अपनी व्यक्तित्व को निखार सकते हैं
जीवन मे उंचाईयों को छू सकते हैं
अपने शब्द को सार्थक बनाना है
यह कार्य तो हमें ही करना है
कोई रैकेट या स्टोरी नहीं
बस शब्द और वचन
वचनबद्ध बिना तो सब ढुलमुल
जीवन ढुलमुल से नहीं चलता
निर्णय से संचालित होता है
तो बस अपने और शब्द के बीच जीना है
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