Sunday, 9 December 2018

याद आया मेरवान

आज पेपर पढ रही थी
एक पेज पर मेरवान के बारे मे लिखा था
शायद सबको पता भी न हो
यह मेरवान क्या है
यह ईरानी रेस्त्रां पिछले दिनों काफी सुर्खियो मे रहा था
बंद हो रहा था
कुछ दिनों बंद भी रहा
पर वापस खुल गया
साउथ मुंबई मे ऐसा कोई शख्स न होगा
जो इसके बारे मे न जानता हो
तीन -चार पीढियों ने इसके मावा केक का आंनद लिया
सुबह जल्दी जाना पडता था
ताकि मावा केक खत्म न हो जाय
ग्रांट रोड स्टेशन से नीचे उतरते ही
कई यात्रियों का रुख उस तरफ
बैठकर पाव मस्का और चाय
फिर कभी मावा केक और मीठे समोसे बंधवा
कभी स्वयं के लिए
कभी सहकर्मी के लिए
कभी कभार घर के लिए
पर जाना जरूरी था
नाश्ते का आंनद जो लेना था
याद है जब अपनी बेटी के साथ उतरती थी
तब वहीं मस्का पाव खाकर
और मीठे समोसे -खोया केक बंधवा कर राहत मिलती
क्योंकि सुबह विरार ट्रेन पकड़नी होती थी
जल्दी निकलना पड़ता था
हम दोनों का गंतव्य एक ही था
पाठशाला एक ही
वह पढ़ती थी
मैं वहाँ पढ़ाती थी
एक साथ दो कार्य
कामकाजी महिलाओं को दिक्कत तो होती है
घर और बाहर का रखरखाव
पर मेरवान ने मेरी यह समस्या हल कर दी
बरसों तक इस पर निर्भर रहे
आज सेवानिवृत्त हो चुकी हूं
पर वह मावा केक की मिठास अभी भी कायम है

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