हवा सर्द है
कोहरा घना है
मुख से निकल रही वाष्प है
हाथ - पैर ठिठुर रहे
आग जला ताप रहे
सुबह तो हो गई
अब इंतजार है धूप का
उषा अपनी सुनहरी किरणों के साथ आगमन कर रही
कोहरे को चीरती धूप प्रवेश कर रही
सबके चेहरे चमक उठे
सूरज की लालिमा छाते ही
सब चैतन्य हो उठे
ठिठुरन गायब
आग बूझ गई
ठंडी बोरियां - बिस्तर समेट भाग उठी
कोहरा का कोहराम ओझल
धूप की रानी आई है
अपना जलवा बिखेर रही है
सबको भगा अपना साम्राज्य कायम कर रही है
वह अपने आप मे काफी है
सबसे शक्तिशाली है
उसके सामने टिकने की औकात नहीं
कोहरे का साम्राज्य तो चुटकियों मे गायब
क्योंकि वह स्वयं रोशनी है
हर किसी को रोशन करती
बिना भेदभाव
निस्वार्थ के
सब पर अपना स्नेह फैलाती
हर पत्ते को छेदकर
हर दरवाजा - रोशनदान से प्रवेश कर
तभी तो सबको उससे प्यार
उसका तहे दिल से स्वागत
उसे नमस्कार कर दिन की शुरुआत
चेतना फैलाती आती
यह हमारी प्यारी धूप रानी
आभामय कर जाती
धरती से गगन
आभारी हर जीव
जीवनदायिनी है सबकी
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