कुंभ आस्था का संगम
क्या गृहस्थ
क्या साधू
क्या नागा
क्या किन्नर
क्या नर /नारी
क्या वृद्ध और बच्चे
अमीर - गरीब
हर जाति
देशी / विदेशी
सब जमा है गंगा तट पर
मां गंगा का आशीर्वाद सब पर बरस रहा
अमृत बरस रहा है
पतित पावनी माता
सबके पाप समेट रही है
स्वर्ग के द्वार खोल रही है
यह कुंभ है
सबको अपने मे समाये
कोई रोक टोक नहीं
कोई भेदभाव नहीं
जिसको आना है आए
श्रद्धा भाव से डुबकी लगाए
महात्माओं के सानिध्य मे रहे
तीर्थराज प्रयाग के संगम मे डुबकी लगाए
स्वंय को धन्य करें
विश्व के सबसे बडा मेले मे सहभागी बने
यह अभूतपूर्व मौका है
इसके अगर छह साल बाद आएगा
इंतजार न करें
चलो चले कुंभ
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