Saturday, 2 February 2019

बाबूजी की कुछ बातें

कभी कभी लगता है
मैं जो भी हूँ
जैसी भी हूँ
आपका अमूल्य योगदान
झूठ को स्वीकार करना नहीं
दिखावा करना नहीं
बड़प्पन दिखाना नहीं
अंहकार का स्थान नहीं

बहुत बड़े बड़े दिग्गजों को देखा है
पद - प्रतिष्ठा का अभिमान
सुंदर देहव्यष्टि का अभिमान
सबको तुच्छ समझना
नीचा दिखाना

सब यही खत्म हो गया
आंडबर और दिखावे मे जीवन बिताना
गर्व और घमंड से तन कर चलना
भले शायद हो नहीं

सादगी से जीना
ज्ञान के सागर मे डूबना - उतराना
स्नेह और प्यार बांटना
अपनों का सहना
बस देना ही लेना कुछ नहीं
बेईमानी और धोखे से दूर

ऐसे भी व्यक्ति जिंदगी गुजार सकता है
अपनी नजरों मे सही
किसी का कुछ बिगाड़ना नहीं
समाज की परवाह भी नहीं

उनका एक वाक्य
अगर  सौ लोग मिलकर भी किसी बात को सही कहे तो वह सही नहीं हो जाता
दूसरा अगर पत्नी अच्छी मिले तो स्वर्ग यही है नहीं तो नरक   विलियम शेक्सपियर का वाक्य
तीसरा ईसा मसीह का
अपने पड़ोसी से प्रेम करो

अंत मे बाबूजी के लिए उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का
हर मनुष्य मे कुछ न कुछ कमजोरियां होती है
यही कमजोरियाँ तो उसे इंसान बनाती है
निर्दोष चरित्र तो देवता का हो जाएगा
और उसे हम समझ ही न पाएंगे
इसलिए हमें मनुष्य को उसके कमजोरियों के साथ स्वीकार करना चाहिए

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