जंग जरूरी नहीं मजबूरी है
जंग किसी समस्या का हल तो नहीं
इसमें तो नुकसान ही है
जान- माल का ,जीव का
समय का ,विकास का
जंग से तो इंसानियत का खून होता है
रक्त तो दोनों तरफ से बहता है
वह है मानव का
यह बेघर करता है
अनाथ करता है
निराधार करता है
सुहाग छिनता है
असहाय करता है
सब कुछ नष्ट कर डालता है
जिसे खड़े करने मे सदियों लग जाते हैं
पूरी पीढी को भुगतना पड़ता है
विनाश के बाद शांति छा जाती है
कोई जीतता तो कोई हारता है
लेकिन मसला तो हल होता ही नहीं
घृणा और नफरत की आग दिलों मे धधकती रहती है
दूश्मनी और बढ़ जाती है
इस बात को समझ लिया जाय
शांतिपूर्ण से मामला सुलझा लिया जाय
यह पहल दोनों तरफ से जरूरी है
एक हमेशा वार करें
दूसरा सहन करता रहे
एक आंतकवाद फैलाता रहे
खून बहाता रहे
बम फे़कता रहे
दूसरा शांति और अहिंसा के नाम पर शांति से बैठा रहे
यह कैसे मुमकिन है
सहनशीलता की भी हद होती है
चूड़ियाँ तो कोई नहीं पहन कर बैठा है
डरपोक भी कोई नहीं है
फिर भी जंग जायज तो नहीं
एक ,दूसरे को हराने के लिए
नीचा दिखाई के लिए
गर्वित होने के लिए
जंग छेड़ देना
यह तो कोई उपाय नहीं
समझना होगा
ठोस कदम उठाना होगा
ध्यान रहे
ताली एक हाथ से नहीं बजती
दोनों को साथ आना होगा
मिल बैठ कर बात करना होगा
पुरानी दूश्मनी को खत्म करना पड़ेगा
नये सिरे से शुरुआत करनी होगी
ऐसा न हो कि
कोई सिरफिरा ऐसा निर्णय ले ले
कि सदियों तक पछताना पड़े
मानव पहले बम बाद मे
जीवन पहले मृत्यु अंत मे
हर जीवन बहुमूल्य
वह तुम्हारा हो
वह हमारा हो
बहता तो लहू ही है
मां की ही गोद सूनी होती है
किसी भी सूरतेहाल मे
जंग जायज तो नहीं ।
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