कलम चलती रही
पन्ने भरते रहे
नोटबुक परेशान सा
सोचता रहता
इतना क्या लिखती रहती
कलम हंस पड़ी
कहने लगी
भाई मैं ऐसे ही नहीं चलती हूँ
अपनी स्याही तुझ पर उड़ेलती हूँ
मैं तो भावनाओं को लोगों को परोसती हूँ
उनसे तालमेल बिठाती हूँ
भूत और वर्तमान मे गोते लगाती हूँ
मैं लोगों के आँसू से कागज भिगोती हूँ
लोगों के दुख -दर्द पीड़िता को बयान करती हूं
उनकी हर भावना को साझा करती हूं
उनके साथ हंसती भी हूँ
रोती भी हूँ
उनके मन की थाह लेती हूं
जब वाणी असमर्थ हो जाती है
तब मेरा ही सहारा होता है
मैं लोगों को लेखक और कवि बना देती हूं
मैं निर्जिव भले ही हूं
पर मुझसे पूरा जीवन लिखा जाता है
बिना कलम के तो कुछ लिखा ही नहीं जा सकता
आज समय बदला है
उंगलियां मशीन पर चलती है
पर भावना तो मुझसे ही अब भी चलती है
मैं भावनाओं के संमुदर मे गोते लगाती हूँ
फिर उन्हें कागज पर रेखांकित करती हूं
हर भावना की एक विशिष्टता होती है
कलम का तो काम ही है चलना
शरीर से मन को निकाल कर कागज पर लाना
स्याही खत्म होती रहती है
पन्ना खत्म होता रहता है
पर कलम अनवरत चलती रहती है
सदियों से चल ही रही है
जिंदगी के साथ -साथ
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